ब्‍लागरों की ब्‍ला-ब्‍ला

जानबूझकर दूर रखे गये हिन्दूवादी ब्लागर !
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हिन्‍दूवादी ब्‍लागरों को दूर रखकर आयोजक सेमिनार को साम्‍प्रदायिका के तीखे सवालों पर जूझने से तो बचा ले गये लेकिन विवाद फिर भी उनसे चिपक ही गये। सेमिनार से हिन्‍दूवादी या, और भी साफ शब्‍दों में कहें तो धार्मिक कटटरता की हद तक पहुंच जाने वाले तमाम ब्‍लागर नदारद रहे। यहां न तो जबलपुर बिग्रेड मौजूद थी और न साइबर दुनिया में भी हिन्‍दूत्‍तव की टकसाली दुनिया चलाने में यकीन रखने वाले दिखायी पडे। इस सवाल पर जब कुछ को टटोला गया तो कुछ ब्‍लागरों ने अपने छाले फोडे और बताया कि दूसरे ब्‍लागरों को तो रेल टिकट से लेकर खाने-पीने और टिकाने तक का इंतजाम किया गया लेकिन उन्‍हें आपैचारिक तौर से भी नहीं न्‍यौता गया। अब वे आवछिंत तत्व की तरह इसमें शामिल होना नहीं चाहते है। उन्‍होंने इस आयोजन को राष्‍टीय आयोजन मानने से भी इंकार कर दिया। अब उनकी इस शिकायत का जवाब तो भाई सिद्वार्थ शंकर ही अच्‍छी तरह से दे सकते हैं।

तो, भिन्‍न विचार धाराओं के ब्‍लागरों के न पहुचने से सेमिनार कुछ एंगागी सा अधिक रहा। शुक्रवार को दूसरे सत्र में तमाम ऐसी बातें पर चर्चा हुयी जिससे सेमिनार रियूड्स होता दिखा। मैं इस माध्‍यम से जुडा नया सदस्‍य हूं लेकिन फिर भी जहां तक मेरी समझ बनती है उसमें अगर ब्‍लाग और ब्‍लागिंग को दो शब्‍दों में कहें तो, नेट पर अपने सभी विचारों को साझा करने के मंच का नाम ही ब्‍लाग है। कुछ साथी नेटवर्किग साइटस का भी हवाला दे सकते हैं लेकिन उसकी भी एक सीमा है और ब्‍लाग के मामले में अभी इसे निश्चित नहीं किया जा सकता।

दूसरे सत्र में जिस अनाम और बेनाम टिप्पडियों के सवाल पर सबसे ज्‍यादा हंगामा बरपा वास्‍तव मे उससे बहस एक अलग दिशा में घूम रही थी। इस मुददे पर तो कई ब्‍लागरों की बाडी लैग्‍वेज ऐसी बन गयी मानो वे इस मौके का इस्‍तेमाल अपने किसी पुराने हिसाब को चुकता करने में अधिक करना चाहते हैं। आज जब सेल्‍फ सेंसरशिप जैसे विकल्‍प मौजूद हैं तो इस सवाल पर ऐसी अक्रामकता समझ से परे है। इस बात को मानने से शायद ही किसी को इंकार हो कि ब्‍लागर भी समाज के ही किसी न किसी हिस्‍से से आया है। जिस समाज से वह उठकर इस साइबर दुनिया के बीच आया है, उसकी प्रतिक्रिया करने का अंदाज भी उसी समाज की तरह होगा। हममें से हरेक का रोजाना समाना ऐसे शार्ट-टैम्‍पर लोगों से होता है जिसको भिडने का शौक है वह मजे लेकर उनसे भिडता है और जिसे दूसरा काम है वह उसे नोटिस नहीं लेता। आज जब साइबर दुनिया में ऐसे तत्‍वों के रिफाइन करने की सुविधाएं मौजूद है तो गंदगी फैलाने जैसे पंचायती आरोपों के चलते इसे गलत ठहराना कही से भी जायज नहीं दिखता।

मै अखबार की दुनिया से जुडा हूं तो यह मेरे निजी अनुभव की भी बात है कि कई बार परिस्थितियों के चलते लोग अपना नाम समाने नहीं आने नहीं देना चाहते लेकिन व्‍यवस्‍था से तकलीफ के चलते वे हम अखबार वालों के साथ इन तकलीफों को साझा करते हैं। तो मित्रों, ब्‍लाग को भी पंचायती नियम में न बांधकर खुला रहने दिया जाये तो आने वाले समय में इसमें सम्‍भावनाएं बची रहेंगी। नहीं तो यह भी या तो एक दम ठस हो जायेगा या हमारे घरेलू रोजनामाचा लिखने की एक जगह में तब्‍दील हो जायेगा। आपको ऐसी अनाम टिप्‍पडियों या लेखों से एतराज है तो आपके लिए ही सेल्‍फ सेंसरशिप जैसे विकल्‍प मौजूद हैं जिनका इस्‍तेमाल आप मजे से कर सकते हैं।

ऐसे ही मौकों के लिए भाई गोरख पाण्‍डेय बहुत पहले ही कह गये हैं। उनके इस कहन को कई जगह उतारा भी जा चुका है लेकिन इस मौके पर मैं इस कविता को फिर से उतारने का लोभ नहीं सम्‍भाल नहीं पा रहा हूं, ,सो आप सब को यह कविता एक बार फिर पेशे नजर -

समझदारों का गीत-

हवा का रूख कैसा है, हम समझते हैं

हम उसे पीठ क्‍यों दे देते हैं, हम समझते हैं

हम समझते हैं खून का मतलब

पैसे की कीमत हम समझते हैं

क्‍या है पक्ष में विपक्ष में क्‍या है, हम समझते हैं

हम इतना समझते हैं

कि समझने से डरते हैं और चुप रहते हैं

चुप्‍पी का मतलब भी हम समझते हैं

बोलते हैं तो सोच समझकर बोलते हैं

बोलने की आजादी का

टुटपंजिया नौकरी के लिए

आजादी बेचने का मतलब हम समझते हैं

मगर हम क्‍या कर सकते हैं

अगर बेरोजगारी अन्‍याय से

तेज दर से बढ रही है

हम आजादी और बेरोजगारी दोनों के

खतरे समझते हैं

हम खतरों से बाल बाल बच जाते हैं

हम क्‍यों बच जाते हैं, यह भी हम समझते हैं

वैसे हम अपने को

किसी से कम नहीं समझते हैं

हर स्‍याह को सफेद

और सफेद को स्‍याह कर सकते हैं

हम चाय की प्‍यालियों में तूफान खडा कर सकते हैं

करने को तो हम क्रांन्ति भी कर सकते हैं

अगर सरकार कमजोर हो और जनता समझदार

लेकिन हम समझते हैं

कि हम कुछ नहीं कर सकते

हां हम क्‍यों कुंछ नही कर सकते

यह भी हम समझते हैं

तो मित्र ब्‍लागरों, इस उम्‍मीद के साथ कि गोरख पाण्‍डेय की यह कविता सबकी समझदारी में कुछ न कुछ जरूर इजाफा करेगी बाकी दुनिया में सब तो चल ही रहा है।

पुर्नश्‍च

भाई सिद्वार्थ शंकर जी को बधाई की इलाहाबाद में उनके प्रयास से ब्‍लागर मीट का आयोजन किया गया। सिद्वार्थ जी ने हम लोगों को सस्‍नेह बुलाया था इसलिए मेरे लिखे को अन्‍यथा मत लीजियेगा।

13 Response to "ब्‍लागरों की ब्‍ला-ब्‍ला"

  1. हिमांशु जी आपका यह विवेक पूर्ण विश्लेषण पसन्द आया यद्यपि शुरुआत मे ऐसा लगा जैसे आप किसी पक्ष विशेष की ओर से कोई बात रखने जा रहे हैं । भविष्य मे ब्लॉगिंग की दशा और दिशा पर यह आवश्यक चिंतन है । अब समय ही बतायेगा कि हिन्दी ब्लॉगर्स इसे क्या स्वरूप प्रदान करते हैं । आपकी बात से एक मज़ेदार विचार भी उत्पन्न हुआ कि भविष्य में कुछ इस तरह के सम्मेलन भी हो सकते है फलाना धर्म वादी ब्लॉगर्स सम्मेलन ढिकाना धर्मवादी ब्लॉगर्स सम्मेलन, कलावादी ब्लॉगर्स सम्मेलन , साम्यवादी ब्लॉगर्स सम्मेलन , साहित्यिक ब्लॉगर्स सम्मेलन गैर साहित्यिक ब्लॉगर्स् सम्मेलन ,महिला ब्लॉगर्स सम्मेलन् इत्यादी । बेहतर है कि फिल हाल ऐसा न हो । गोरख पाण्डेय की इस महत्वपूर्ण कविता के माध्यम से आपने अपनी बात को पूर्णता तक पहुंचा दिया है ।

    आप ने विश्लेषण सही किया है। लेकिन हिन्दी ब्लागरों की संख्या इतनी अधिक है कि सब को बुलाया तो नहीं जा सकता था। कुछ को इस आयोजन में खर्चा दे कर बुलाया गया और बाकी को खुला आमंत्रण था इस सूचना के साथ कि जो आना चाहें सूचित करें।
    सम्मेलन राष्ट्रीय था या नहीं यह नहीं कहा जा सकता। मुझे तो अभी राष्ट्र का मतलब भी समझ नहीं आता है। कभी तो बंगाल, गुजरात महाराष्ट्र और तमिल राष्ट्र की तरह व्यवहार करते दिखाई देते हैं। कभी यह देश के संदर्भ में प्रयुक्त होता है तो कभी यह धार्मिक समूह के रूप में परिभाषित होता है जो एक भूभाग के स्वयं को ही सर्वेसर्वा मान बैठते हैं।

    हमारे यहाँ कविसम्मेलन होता है तो उस में सब कवि कभी नहीं होते और कभी हो जाते हैं तो वह कविसम्मेलन के स्थान पर ज्योनार अधिक हो जाता है। कवि सम्मेलन में आठ दस कवि प्रांत के होते हैं और दो-तीन कवि ऐसे होते हैं जो देश के दूसरे भागों से आते हैं उसे राष्ट्रीय कविसम्मेलन कह दिया जाता है और कोई उस पर आपत्ति नहीं करता है।
    ब्लागिंग तो एक ऐसी चीज है कि पोस्ट के प्रकाशित होते ही वह सारी दुनिया में नेट पर दिखाई देने लगती है। इस लिए उस का चरित्र ही अंतर्राष्ट्रीय या दुनियावी है। यदि कभी विश्व हिंदी ब्लागर सम्मेलन होगा तो भी उस में चुनिंदा लोग ही हिस्सा लेंगे। हालांकि एक अन्य पोस्ट पर यह भी सवाल उठाया गया है कि चुनिंदा की परिभाषा क्या है?
    विवादों का क्या वे रोज जन्म लेते है और हर बार एक नई बात सिखा जाते हैं। हर विवाद सीखने वाले के लिए एक नया पाठ होता है जिस से वह सीखता है।
    यह सम्मेलन कैसा भी हो? मेरे ख्याल से यह अब तक का सब से बड़ा हिन्दी ब्लागर सम्मेलन है, इस का महत्व कम नहीं है। यह हिन्दी ब्लागिंग में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

    जबलपुर बिग्रेड - ये क्या है?? कोई खास मानसिकता या झुकाव के लोग हैं क्या, सामान्य ज्ञान बढ़ाने हेतु पूछना चाहता हूँ वरना कोई खास प्रयोजन नहीं.

    वैसे विश्लेषण के साथ गोरखा पाण्डे जी की रचना का संदर्भ अच्छा रहा.

    सर्वप्रथम आपको आपको शीर्षक की बहुत बहुत बधाई।

    भाई हम तो अपने काम-धाम में व्‍यस्‍त थे, जब आपके अनुसार मीट में नाम-बेनामी टिप्‍पणी की टंकार गुँज रही थी उस समय मेरे कानो के हथौड़ो की धमक सुनाई दे रही थी।

    23-24 के कार्यक्रम की जानकारी तो मुझे थी किन्‍तु कार्यक्रम के प्रारूप के विषय में मुझे जानकारी नही थी।

    आप सिद्वार्थ जी के बुलावे पर पहुँचे, और हम आपके और मिश्र जी के बातये कार्यक्रम के अनुसार :)

    गोरखा जी की कविता जरूर दिल को छू गई।

    पुन:श्‍च प्रथम दिन की दूसरे सत्र की चर्चा में मै सवा घंटे मै रहा, तो पाया कि जब सुरेश जी के ब्‍लाग की चर्चा कि गई तो वो नही थे किन्‍तु वे नही थे। हर व्‍यक्ति की अपनी विधा है चिट्ठाकारी की, और वह अपने आप में महारथी है। कोई इंकार नही कर सकता।

    achchi lagi yeh charcha....

    क्या कहे हमारी तो बोलती हि बन्द हो गै है

    अच्चा हुआ पहले दिन कार्यक्रम मे नही शामिल हो पाया

    वीनस केशरी

    EK PAIRODY......

    दुनिया हँसे हँसती रहे मैं हूँ ब्लाग्गर मुझे ख़ुद से है प्यार
    कुछ भी कहे कहती रहे मैं हूँ ब्लाग्गर मुझे ख़ुद से है प्यार

    नगरी-नगरी जाता हूँ बस अपना राग सुनाता हूँ
    जब भी मुझको मौका मिला लक्षण अपने दिखाता हूँ
    करो न करो मेरी जय जयकार ....

    ब्लाग जगत में विचरूं मैं ब्लाग जगत का हूँ वासी
    सामाजिक प्राणी नहीं मैं, गुण हैं मेरे बनवासी
    कर दिया सबका बंटाधार....

    हिमांशु जी अब आप से मैं वही पूछ रहा हूं जबलपुर बिग्रेड - क्या है??

    भाई हिमांशु पाण्डेय जी
    हमारा अभिवंदन
    और ब्लागर्स सम्मलेन के लिए बधाई.
    व्यस्तताओं के चलते अंतर जाल के माध्यम से तो नहीं लेकिन दूरभाषों के के माध्यम से इलाहाबादी ब्लागर्स सेमीनार की गूँज जब मेरे कानों तक पहुँची तो माथे पर जबलपुरिया ठप्पा होने के कारण मेरी जिज्ञासा आपकी पोस्ट तक पहुँचा गयी. अपनी बात कहूँ अथवा दूसरे शब्दों में यूँ कहूँ कि अपनी आपत्ति दर्ज करूँ इसके पूर्व आपकी पोस्ट की दो पंक्तियाँ बताना चाहता हूँ --

    ""सेमिनार से हिन्‍दूवादी या, और भी साफ शब्‍दों में कहें तो धार्मिक कटटरता की हद तक पहुंच जाने वाले तमाम ब्‍लागर नदारद रहे। यहां न तो जबलपुर बिग्रेड मौजूद थी और न साइबर दुनिया में भी हिन्‍दूत्‍तव की टकसाली दुनिया चलाने में यकीन रखने वाले दिखायी पडे।""

    कृपया अपनी अधूरी अभिव्यक्ति को पूर्णता प्रदान करें ताकि आपकी विद्वत अभिव्यक्ति को हम जैसे सामान्य ब्लागर्स संशय मिटाकर आपकी बात का आशय समझ सकें.मैं अपना संशय आपकी सुविधा के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ.
    १-पहले तो मैं स्पष्ट करना चाहूँगा कि मुझे आपके द्बारा लिखे गए " जबलपुर ब्रिगेड " जैसे शब्दों से कोई आपत्ति नहीं है.
    २- मुझे आपत्ति इस बात की है कि आप हिन्दुत्त्व और धार्मिक कट्टरता के प्रवाह में जबलपुर ब्रिगेड को भी बहा ले गये ? यदि ऐसा नहीं ही तो ब्लॉग की पोस्ट में न सही अपने स्पष्टीकरण में स्पष्ट करे तो आपकी भलमनसाहत के हम शुक्र गुजार होंगे !!!!
    ३. कृपया ये भी बता दें कि जबलपुर ब्लॉगर समूह को " जबलपुर ब्रिगेड " के नामकरण की कैसे सूझी ?
    मुझे तो अंशतः आभास हो रहा है कि आपकी मानसिकता हम जबलपुरियों के प्रति इतनी निम्न और घ्रणित नहीं हो सकती कि आप की सोच में हम साम्प्रदायिक हो सकते हैं ?
    शुभ भावनाओं सहित आपकी निष्पक्ष टीप के इन्तजार में.....
    - विजय तिवारी " किसलय"
    विनोबा भावे द्बारा नामित संस्कारधानी जबलपुर

    प्रिय भाई ,

    किसलय जी

    सबसे पहले तो उत्‍तर के लिए प्रस्‍तुत हो पाने में विलम्‍ब का क्षमाप्रर्थी हूं, साथ ही शुक्रगुजार भी कि आपने मेरी मंशा समझी और इस वजह से अपने भीतर कटघरे में खड़ा होने के अहसास के बजाये मैं एक सहजता महसूस कर रहा हूं।

    आपने मेरे पूरे जबलपुर बिग्रेड के हिन्‍दूवादी ठहराये जाने को लेकर आपत्ति जाहिर की थी। किसलय जी, मैं भी आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं और मानता हूं कि जबलपुर के हमारे सभी साथी हिन्‍दूत्‍व की विचारधारा से प्रभावित नहीं हैं लेकिन मैंने जो लिखा उसमें इशारा सिर्फ उन्‍हीं साथियों की ओर था जो इस विचारधारा से इत्‍तेफाक रखते हैं और इसमें हमारे जबलपुर के सभी ब्‍लागर साथी शामिल नहीं हैं , शेष आप खुद सर्वोदयी नेता विनोबा जी के संस्‍कारित नगर से जुडे हैं इसलिए आप स्‍वयं भी समझ सकते हैं।

    आखिर में आपको एक बार फिर मेरी मंशा गलत न समझने के लिए ढेरो साधुवाद और उम्‍मीद है मेरी 'विद्वात अभिव्‍यक्ति पर अपनी ऐसी ही साधिकार टिप्‍पडियों के लिए अडडे् पर आते रहेंगे।

    स्‍वस्‍थ एवं सानंद होंगे

    आपका हिमांशु

    प्रिय भाई ,

    किसलय जी

    सबसे पहले तो उत्‍तर के लिए प्रस्‍तुत हो पाने में विलम्‍ब का क्षमाप्रर्थी हूं, साथ ही शुक्रगुजार भी कि आपने मेरी मंशा समझी और इस वजह से अपने भीतर कटघरे में खड़ा होने के अहसास के बजाये मैं एक सहजता महसूस कर रहा हूं।

    आपने मेरे पूरे जबलपुर बिग्रेड के हिन्‍दूवादी ठहराये जाने को लेकर आपत्ति जाहिर की थी। किसलय जी, मैं भी आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं और मानता हूं कि जबलपुर के हमारे सभी साथी हिन्‍दूत्‍व की विचारधारा से प्रभावित नहीं हैं लेकिन मैंने जो लिखा उसमें इशारा सिर्फ उन्‍हीं साथियों की ओर था जो इस विचारधारा से इत्‍तेफाक रखते हैं और इसमें हमारे जबलपुर के सभी ब्‍लागर साथी शामिल नहीं हैं , शेष आप खुद सर्वोदयी नेता विनोबा जी के संस्‍कारित नगर से जुडे हैं इसलिए आप स्‍वयं भी समझ सकते हैं।

    आखिर में आपको एक बार फिर मेरी मंशा गलत न समझने के लिए ढेरो साधुवाद और उम्‍मीद है मेरी 'विद्वात अभिव्‍यक्ति पर अपनी ऐसी ही साधिकार टिप्‍पडियों के लिए अडडे् पर आते रहेंगे।

    स्‍वस्‍थ एवं सानंद होंगे

    आपका हिमांशु

    Anonymous says:

    achhi parstuti...

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